थाईलैंड-कंबोडिया युद्ध
26 जुलाई 2025: दक्षिण-पूर्वी एशिया में एक बार फिर युद्ध की लपटें तेज़ हो गई हैं। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा पर जारी दशकों पुराना विवाद, जो एक प्राचीन मंदिर के इर्द-गिर्द घूमता है, अब एक पूर्णकालिक संघर्ष का रूप ले चुका है। दोनों देशों के बीच हुई हालिया झड़पों में कई लोगों की जान गई है और हजारों विस्थापित हुए हैं। यह केवल सीमा विवाद नहीं, बल्कि सदियों पुराने इतिहास, उपनिवेशवाद और राष्ट्रवाद की जटिल परतें हैं जो इस संघर्ष को गहरा कर रही हैं।
अनुक्रमणिका (Table of Contents):
- परिचय: फिर क्यों भड़की आग?
- विवाद की जड़ें: इतिहास और उपनिवेशवाद
- प्राचीन ख्मेर साम्राज्य और स्याम का उदय
- फ्रांसीसी उपनिवेशवाद और 1907 का नक्शा
- 1962 का अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला: प्रेह विहार मंदिर
- प्रेह विहार मंदिर: विवाद का हृदय
- यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और 2008 का तनाव
- 2013 का अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का अंतिम फैसला
- हालिया घटनाक्रम: 2025 में बढ़ी अशांति
- मई 2025: पहली झड़प और कूटनीतिक तनाव
- जुलाई 2025: लैंडमाइन विस्फोट और राजदूतों का निष्कासन
- 24-25 जुलाई 2025: हवाई हमले और रॉकेट दागे गए
- मानवीय लागत और क्षेत्रीय प्रभाव
- आगे का रास्ता: कूटनीति या संघर्ष?
1. परिचय: फिर क्यों भड़की आग?
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच सीमा पर तनाव ने हाल के दिनों में एक गंभीर मोड़ ले लिया है। दोनों देशों के सैनिक आमने-सामने हैं, तोपखाने और रॉकेटों का इस्तेमाल हो रहा है, और थाईलैंड ने हवाई हमले भी किए हैं। इस संघर्ष के केंद्र में 11वीं शताब्दी का प्रेह विहार (Preah Vihear) मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन हिंदू मंदिर है। यह विवाद, जो सदियों पुराना है, अब राजनयिक संबंधों के टूटने और हजारों लोगों के विस्थापन का कारण बन गया है।
2. विवाद की जड़ें: इतिहास और उपनिवेशवाद
प्राचीन ख्मेर साम्राज्य और स्याम का उदय:
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच का संघर्ष सिर्फ आज का नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें सदियों पहले ख्मेर साम्राज्य के पतन और स्याम (अब थाईलैंड) के उदय में निहित हैं। 14वीं-15वीं शताब्दी में, ख्मेर साम्राज्य का प्रभाव वर्तमान थाईलैंड, वियतनाम और मलेशिया के बड़े हिस्से में फैला हुआ था। जैसे-जैसे अंकोर की शक्ति कम हुई, थाई और वियतनामी साम्राज्यों ने कंबोडिया पर नियंत्रण के लिए होड़ लगाई, जिससे सीमाएं लगातार बदलती रहीं।
फ्रांसीसी उपनिवेशवाद और 1907 का नक्शा:
19वीं सदी के अंत में कंबोडिया पर फ्रांस का उपनिवेश स्थापित होने से क्षेत्रीय संतुलन बदल गया। फ्रांस ने कई समझौतों के माध्यम से थाईलैंड (तब स्याम) को उन क्षेत्रों को छोड़ने के लिए मजबूर किया जिन पर वह पीढ़ियों से कब्जा कर रहा था। इनमें सबसे महत्वपूर्ण 1907 की संधि थी, जिसने बट्टामबांग और सिएम रीप प्रांतों को कंबोडिया के नियंत्रण में लौटा दिया और विवादास्पद फ्रांसीसी सीमा मानचित्र पेश किया – जो वर्तमान प्रेह विहार विवाद का मूल है। इस मानचित्र की अस्पष्टता, जिसे एक जलविभाजक रेखा के साथ खींचा गया था जिसकी स्पष्ट रूप से समझ नहीं थी, ने प्रतिस्पर्धी दावों को जन्म दिया।
1962 का अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला: प्रेह विहार मंदिर:
1962 में, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने फैसला सुनाया कि प्रेह विहार मंदिर कंबोडियाई क्षेत्र में स्थित है। न्यायालय ने एक 1907 के फ्रांसीसी-निर्मित नक्शे का हवाला दिया, जो एक जलविभाजक रेखा का पालन करने के समझौते पर आधारित था। थाईलैंड ने नक्शे की वैधता पर आपत्ति जताई, यह दावा करते हुए कि उसने जानबूझकर सीमांकन को स्वीकार नहीं किया था।
3. प्रेह विहार मंदिर: विवाद का हृदय

यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और 2008 का तनाव:
2008 में, कंबोडिया ने प्रेह विहार को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में पंजीकृत करने में सफलता प्राप्त की, जिसके बाद तनाव एक बार फिर बढ़ गया। थाई राष्ट्रवादियों ने इस पर आपत्ति जताई, और झड़पें हुईं, जो 2011 में एक घातक संघर्ष में बदल गईं जिसमें कम से कम 15 लोग मारे गए।
2013 का अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का अंतिम फैसला:
2013 में, ICJ ने अपने 1962 के फैसले की पुष्टि की, इस बार यह घोषणा करते हुए कि मंदिर के आसपास की भूमि भी कंबोडियाई थी – यह एक ऐसा निर्णय है जो बैंकॉक में अभी भी टीस देता है।1 हालांकि, थाईलैंड का तर्क है कि सीमा के कुछ हिस्से, विशेष रूप से ता मुएन थोम (Ta Muen Thom) और ता मोअन थोम (Ta Moan Thom) जैसे प्राचीन मंदिरों के आसपास, अभी भी बातचीत के अधीन हैं।
4. हालिया घटनाक्रम: 2025 में बढ़ी अशांति
मई 2025: पहली झड़प और कूटनीतिक तनाव:
28 मई 2025 को, “एमराल्ड ट्रायंगल” नामक विवादित सीमा क्षेत्र में गोलीबारी हुई, जिसमें एक कंबोडियाई सैनिक की मौत हो गई। दोनों देशों ने तुरंत एक-दूसरे पर उकसाने का आरोप लगाया। इस घटना ने दोनों देशों के बीच दशकों में सबसे खराब संबंध शुरू किए।
जुलाई 2025: लैंडमाइन विस्फोट और राजदूतों का निष्कासन:
जुलाई की शुरुआत में, लैंडमाइन विस्फोटों ने थाई सैनिकों को घायल कर दिया, जिसके लिए थाईलैंड ने कंबोडिया को दोषी ठहराया। कंबोडिया ने इन आरोपों को निराधार बताया, यह कहते हुए कि ये खदानें पिछली लड़ाइयों के अवशेष हैं। थाईलैंड ने कंबोडियाई राजदूत को निष्कासित कर दिया और कई सीमा चौकियाँ बंद कर दीं। कंबोडिया ने जवाबी कार्रवाई में बैंकॉक में अपने दूतावास से सभी कर्मचारियों को वापस बुला लिया और राजनयिक संबंधों को निम्नतम स्तर पर ला दिया।
24-25 जुलाई 2025: हवाई हमले और रॉकेट दागे गए:
24 जुलाई को थाईलैंड ने कंबोडियाई ड्रोन की उपस्थिति की सूचना दी, जिसके बाद गोलीबारी शुरू हो गई। थाईलैंड ने दावा किया कि कंबोडियाई सैनिकों ने पहले गोलीबारी की, जबकि कंबोडिया ने थाईलैंड पर “बिना उकसावे के हमला” करने का आरोप लगाया। यह संघर्ष तेजी से बढ़ा, जिसमें तोपखाने और रॉकेट का इस्तेमाल हुआ। थाईलैंड ने F-16 लड़ाकू जेट विमानों के साथ हवाई हमले किए। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर नागरिक और सैन्य ठिकानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया है। कम से कम 32 लोगों के मारे जाने की खबर है, जिनमें नागरिक और सैनिक दोनों शामिल हैं, और हजारों लोग विस्थापित हुए हैं।
5. मानवीय लागत और क्षेत्रीय प्रभाव
यह संघर्ष न केवल हताहतों और विस्थापन का कारण बन रहा है, बल्कि दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों को भी प्रभावित कर रहा है। कंबोडिया ने थाई फलों, सब्जियों, बिजली और इंटरनेट आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है, जबकि थाईलैंड ने सीमा पार आवाजाही प्रतिबंधित कर दी है। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर संयुक्त राष्ट्र और मलेशिया, ने दोनों पक्षों से संयम बरतने और बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने का आग्रह किया है।
6. आगे का रास्ता: कूटनीति या संघर्ष?
यह थाईलैंड-कंबोडिया विवाद एक ऐसे क्षेत्र में अस्थिरता का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है जो आमतौर पर शांतिपूर्ण माना जाता है। जब तक दोनों देश एक स्थायी समाधान तक पहुंचने के लिए ठोस बातचीत में शामिल नहीं होते, तब तक प्रेह विहार मंदिर के आसपास की सीमा पर तनाव बने रहने की संभावना है। आम आदमी केवल यह उम्मीद कर सकता है कि कूटनीति अंततः हिंसा पर विजय प्राप्त करेगी और इस प्राचीन विवाद को अंततः शांति मिलेगी।
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